सर सैय्यद अहमद खाँ एवं अलीगढ़ आंदोलन
- सर सैय्यद अहमद खाँ का जन्म 1817 ई. में दिल्ली में हुआ। 1857 ई. के विद्रोह के समय वे बिजनौर में सदर निजाम के पद पर नियुक्त थे।
- पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित अलीगढ़ आंदोलन के मुख्य सूत्रधार सैय्यद अहमद खाँ थे। उनके मुख्य सहयोगी - नजर अहमद, मोहसिन उल मुल्क और चिराग अली, अल्ताफ हुसैन जैसे लोग थे। मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने हेतु सैय्यद अहमद ने 1864 ई. में गाजीपुर में अंग्रेजी शिक्षा का एक स्कूल स्थापित किया तथा आधुनिक विचारों को फैलाने के लिए एक ‘मुस्लिम शिक्षा सभा’ की स्थापना की।
- उनका मानना था कि अंग्रेजों एवं मुसलमानों के बीच अच्छे संबंधों के बगैर मुस्लिम समाज का पुनरूत्थान नहीं हो सकता है। इसी उद्देश्य से उन्होंने ‘लॉयल मोहम्मडन ऑफ इंडिया’ नामक पर्चा निकाला। बनारस के राजा शिवप्रसाद के साथ मिलकर ‘देशभक्त एसोसिएशन’ (पैट्रियाटिक एशोसिएशन) की स्थापना की।
- ब्रिटिश शासकों की दृष्टि में मुस्लिम समुदाय की छवि सुधारने के लिए 1857 ई. के विद्रोह के बाद अखबार-ए-बगावत-ए-हिंद (1860 ई. में) की रचना की, जिसमें उन्होंने मुसलमानों की छवि सुधारने एवं विद्रोह के दायित्व से मुक्त करने का प्रयास किया। 1857 ई. के गदर पर किसी हिंदुस्तानी द्वारा लिखित यह प्रथम ड्डति थी।
- उनका विचार था कि मुस्लिम समाज का कल्याण पाश्चात्य शिक्षा, राजनीतिक एवं वैज्ञानिक विचारों को ग्रहण करने के उपरांत ही हो सकता है। 1864 ई. में उन्होंने साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य विदेशी पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद करना था।
- 1870 ई. में उन्होंने तहजीब-उल-अखलाक (सभ्यता और नैतिकता) नामक पत्रिका का प्रकाशन किया।
- उन्होंने इस्लाम में सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का भी प्रयत्न किया। उन्होंने पीरी मुरीदी प्रथा को समाप्त करने का प्रयत्न किया। वे पर्दा प्रथा के भी विरोधी थे। उन्होंने कुरान पर टीका लिखा, जिसमें उन्होंने कुरान की आधुनिक व्याख्या पर जोर दिया।
- 1869 ई. में वे इंग्लैण्ड गये। जहाँ वे पश्चिमी शिक्षा एवं संस्कृति के पूर्ण प्रभाव में आ गये। इधर डब्लू. हंटर की पुस्तक ‘इंडियन मुसलमान’ में सुझाव दिया गया कि सरकार को मुसलमानों से समझौता कर उसे अपने पक्ष में मिलाना चाहिए।
- ऐसी स्थिति में उन्होंने मुसलमानों को आंग्ल पद्धति से शिक्षित करने के लिए अलीगढ़ में पाश्चात्य शिक्षा केन्द्र विकसित करने का निर्णय लिया। उन्होंने अंग्रेजों के समर्थन से महारानी विक्टोरिया की वर्षगांठ पर 24 मई 1875 ई. को अलीगढ़ में एक स्कूल की स्थापना की। 1879 ई. में यह मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज के रूप में स्थापित हो गया। बाद में यही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। इस संस्था को अंग्रेजों ने भी सहायता प्रदान की। संयुक्त प्रांत के गवर्नर म्यूर ने इस कॉलेज के लिए भूमि प्रदान की तथा लॉर्ड नार्थब्रूक ने 10 हजार रूपये व्यक्तिगत रूप से दान दिया।
- सर थियोडोर बेक को ‘मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज’ का प्रथम प्रिंसीपल बनाया गया। इन्हीं की प्रेरणा से 1893 ई. में भारतीय मुसलमानों को राजनीति से पृथक रखने के लिए एक संगठन स्थापित किया, जो उत्तर भारत का ऐंग्लो ओरियंटल सुरक्षा समुदाय कहलाया। थियोडोर बेक के प्रभाव के कारण ही अलीगढ़ आंदोलन का एक उद्देश्य मुसलमानों को कांग्रेस में सम्मिलित होने से रोकना हो गया। थियोडोर बेक की मृत्यु के बाद मौरिसन उस कॉलेज का प्रिंसिपल बना और उसने भी थियोडोर की नीति एवं सिद्धांतों का ही पालन किया।
- 1887 ई. में जब बदरूद्दीन तैयब जी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया तो सैय्यद अहमद खाँ ने इसका तीव्र विरोध किया। सर सैय्यद अहमद ने कांग्रेस का विरोध करने के लिए 1888 ई. से ‘यूनाईटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसिएशन’ की स्थापना की। उनके अनुसार "कांग्रेस वास्तव में बिना शस्त्रों की गृहयुद्ध का प्रतीक थी।" इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा था कि "कांग्रेस का लक्ष्य इस देश पर शासन करना है और यद्यपि वे इस शासन को सभी भारतीयों के नाम से करना चाहते हैं, लेकिन मुसलमान ऐसे शासन में असहाय होंगे, क्योंकि वे सर्वदा अल्प होंगे।" 1886 ई. में सर सैय्यद अहमद खाँ ने ‘वार्षिक मुस्लिम शिक्षा सम्मेलन’ की स्थापना की। प्रतिवर्ष उसका अधिवेशन उन्हीं दिनों किया जाता था, जिन दिनों में कांग्रेस का अधिवेशन होता था।