ज्वालामुखी (Volcanoes)
ज्वालामुखी मुख्य रूप से एक विवर या छिद्र होता है जिसका संबंध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है तथा जिसके माध्यम से लावा, राख, गैस, जलवाष्प आदि का निर्गमन होता है। ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर सतह या उसके अंदर विभिन्न रूपों में इसके ठंडा होने की प्रक्रिया शामिल होती है।
प्रारंभ में मैग्मा तथा लावा एवं आग्नेय शैल का वर्गीकरण उनमें मौजूद सिलिका की मात्रा के आधर पर किया जाता था। सिलिका की मात्रा के आधार पर लावा के दो प्रकार हैं :-
1. Acid Lava- इस लावा में सिलिका की अधिक मात्रा होने के कारण यह कापफी गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है। इसे धरातल पर अधिक पफैलने का मौका नहीं मिलता, अतः यह क्रेटर के आसपास जमा होकर तीव्र ढालवाले ‘गुंबदाकार शंकु’ का निर्माण करता है। इटली में स्ट्राम्बोली तथा प्रफांस में पाई-डी-डोम इसके अच्छे उदाहरण हैं।
2. Basic Lava- इसमें सिलिका की मात्रा कम होती है। अतः यह अम्ल लावा की अपेक्षा अधिक तरल तथा पतला होता है। यह धरातल पर दूर तक पफैलता है जिसके कारण शंकु की ढाल मंद होती है। इसे ‘शील्ड शंकु’ या ‘चपटा शंकु’ कहते हैं। हवाई द्वीप का मोनालोआ शंकु इसका उदाहरण है।
विभिन्न आधारों पर ज्वालामुखी का निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता हैः-
(A) सक्रियता के आधार पर:-
1. सक्रिय (Active) ज्वालामुखी : वैसे ज्वालामुखी जिनसे लावा, गैस तथा विखण्डित पदार्थ सदैव निकला करते हैं। वर्तमान समय में उनकी संख्या लगभग 500 है। इनमें सिसली के उत्तर में लेपारी द्वीप का स्ट्राम्बोली (भूमध्यसागर का प्रकाश स्तंभ), इटली का एटना, इक्वेडोर का कोटोपैक्सी (विश्व का सबसे ऊँचा सक्रिय ज्वालामुखी), अंटार्कटिका का एकमात्रा सक्रिय ज्वालामुखी माउंट इरेबस तथा अंडमान-निकोबार के बैरेन द्वीप में सक्रिय ज्वालामुखी प्रमुख हैं।
2. सुषुप्त (Dormant) ज्वालामुखी : अर्थात् वैसे ज्वालामुखी जो वर्षों से सक्रिय नहीं है पर कभी भी विस्पफोट कर सकते हैं। इनमें इटली का विसुवियस, जापान का फ्रयूजीयामा, इंडोनेशिया का क्राकाताओ तथा अंडमान-निकोबार के नारकोंडम द्वीप में दो सुषुप्त ज्वालामुखी उल्लेखनीय है।
3. मृत (Dead or Extinct) ज्वालामुखी : इसके अंतर्गत वैसे ज्वालामुखी शामिल किए जाते हैं जिनमें हजारों वर्षों से कोई उद्भेदन नहीं हुआ है तथा भविष्य में भी इसकी कोई संभावना नहीं है। अफ्रीका के पूर्वी भाग में स्थित केनिया व किलिमंजारो, इक्वेडोर का चिम्बाराजो, म्यांमार का पोपा, ईरान का देमबन्द व कोहसुल्तान और एंडीज पर्वतश्रेणी का एकांकागुआ इसके प्रमुख उदाहरण हैं ।
(B) क्रेटर के आधार पर :
1. केन्द्रीय उद्भेदन (Central Erruption) : ज्वालामुखी उदगार जब भारी धमाके के साथ केन्द्रीय मुख से उद्भेदित होता है तो उसे केन्द्रीय उद्भेदन कहते हैं। यह विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे होता है। इटली का एटना, जापान का फ्रयूजीयामा तथा इटली का विसुवियस इसके अच्छे उदाहरण हैं।
2. दरारी उद्भेदन (Fissure Erruption) : भू-गर्भिक हलचलों से भूपर्पटी की शैलों में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर निकलता है जिसे दरारी उद्भेदन कहते हैं। यह रचनात्मक प्लेट-किनारों के सहारे होता है।
ज्वालामुखी का विश्व वितरण
प्लेट विवर्तनिकी के आधार पर ज्वालामुखी क्षेत्रों की व्याख्या वर्तमान में सबसे मान्य संकल्पना है। इसके अनुसार 80% ज्वालामुखी विनाशात्मक प्लेट किनारों पर, 15% रचनात्मक प्लेट किनारों पर तथा शेष प्लेट के आन्तरिक भागों में पाए जाते हैं।
1. परि-प्रशान्त महासागरीय मेखला (Circum Pacific Belt) : यहाँ विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे ज्वालामुखी मिलते हैं। विश्व के ज्वालामुखियों का लगभग 2/3 भाग प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीप चापों तथा समुद्री द्वीपों के सहारे पाया जाता है। इसे ‘प्रशान्त महासागर का अग्निवलय’ (Fire ring of the Pacific Ocean) कहते हैं। यह पेटी अंटार्कटिका के माउन्ट इरेबस से शुरू होकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला व उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वतमाला का अनुसरण करते हुए अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, पिफलीपींस आदि द्वीपों से होते हुए ‘मध्य महाद्वीपीय पेटी’ में मिल जाती है।
2. मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-continental Belt) : इस मेखला के अधिकांश ज्वालामुखी विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलते हैं क्योंकि यहाँ यूरेशियन प्लेट तथा अप्रफीकन व इंडियन प्लेट का अभिसरण होता है। इसकी एक शाखा अफ्रीका की भू-भ्रंश घाटी एवं दूसरी शाखा स्पेन व इटली होते हुए काकेशस व हिमालय की ओर आगे बढ़ते हुए दक्षिण की ओर मुड़कर प्रशांत महासागरीय पेटी से मिल जाती है। यह मेखला मुख्य रूप से अल्पाइन-हिमालय पर्वत श्रृंखला के साथ चलती है। भूमध्यसागर के ज्वालामुखी भी इसी पेटी के अन्तर्गत आते हैं। स्ट्राम्बोली, विसुवियस व एटना भूमध्यसागर के ज्वालामुखी हैं। इसी पेटी में ईरान का देमबन्द, कोह सुल्तान, आर्मेनिया का अरारात ज्वालामुखी भी शामिल हैं। यूरोप के अधिकांश ज्वालामुखी इस पेटी में मीडियन मास एवं अफ्रीका के ज्वालामुखी भू-भ्रंश घाटियों के सहारे मिलते हैं। पश्चिम अफ्रीका का एकमात्रा जागृत ज्वालामुखी कैमरून पर्वत है।
3. मध्य अटलांटिक मेखला या मध्य महासागरीय कटक : ये रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलते हैं। जहाँ पर दो प्लेटों के अपसरण के कारण भ्रंश का निर्माण होता है एवं व्रफस्ट के नीचे एस्थेनोस्पेफयर से पेरिडोटाइट तथा बैसाल्टिक मैग्मा उफपर उठते हैं। इनके शीतलन से नवीन व्रफस्ट का निर्माण होता रहता है। कटक के पास नवीनतम लावा होता है एवं कटक से बढ़ती दूरी के साथ लावा भी प्राचीन होता जाता है। हेकला व लाॅकी इस प्रदेश में आइसलैंड के प्रमुख ज्वालामुखी है। एंटलीज दक्षिणी अटलांटिक महासागर के एवं एजोर्स व सेंट हेलेना उत्तरी अटलांटिक महासागर के प्रमुख ज्वालामुखी है।
4. अन्तरा प्लेटीय ज्वालामुखी : महासागरीय या महाद्वीपीय प्लेट के आंतरिक भागों में भी ज्वालामुखी क्रियाएँ देखी गई हैं जिन्हें माइव्रफो प्लेट गतिविधि एवं गर्म स्थल (Hot Plums) की संकल्पना द्वारा समझा जा सकता है। प्लेट विवत्र्तनिकी सिध्दांत द्वारा इनका स्पष्टीकरण अभी तक नहीं हो सका है। हवाई द्वीप से लेकर कमचटका तक के ज्वालामुखी, पूर्वी अफ्रीका के भू-भ्रंश घाटी के ज्वालामुखी एवं ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन से बने कोलम्बिया पठार, पराना पठार, दक्कन का लावा पठार अंतरा प्लेट ज्वालामुखी व्रिफयाओं के अन्तर्गत शामिल किए जा सकते हैं।