मृदा प्रदूषण
- जब भूमि में प्रदूषित जल, रसायनयुक्त कीचड़, कूड़ा, कीटनाशक दवा और उर्वरक अत्यधिक मात्रा में प्रवेश कर जाते हैं तो उससे भूमि की गुणवत्ता घट जाती है। इसे मृदा-प्रदूषण कहा जाता है। मृदा-प्रदूषण की घटना भी आधुनिकता की देन है।
मृदा-प्रदूषण के कारण
(1)कीटनाशक व उर्वरक- कीटनाशक व उर्वरक मृदा-प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। इनके प्रयोग से फसलों की प्राप्ति तो हो जाती है, लेकिन जब वे तत्त्व भूमि में एकत्रित हो जाते हैं तो मिट्टी के सूक्ष्म जीवों का विनाश कर देते हैं। इससे मिट्टी का तापमान प्रभावित होता है और उसके पोषक तत्त्वों के गुण समाप्त हो जाते हैं।
(2)घरेलू अवशिष्ट- कूड़ा-कचरा, गीली जूठन, रद्दी, कागज, पत्तियां, गन्ना-अवशिष्ट, लकड़ी, कांच व चीनी मिट्टी के टूटे हुए बर्तन, चूल्हे की राख, कपड़े, टीन के डिब्बे, सडे-गले फल व सब्जियाँ, अंडों के छिलके आदि अनेक प्रकार के व्यर्थ पदार्थ मिट्टी में मिलकर मृदा-प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं।
(3)औद्योगिक अवशिष्ट- उद्योगों से निकल व्यर्थ पदार्थ किसी न किसी रूप में मृदा-प्रदूषण का कारण बनते हैं।
(4)नगरीय अवशिष्ट- इसके अन्तर्गत मुख्यतः कूड़ा-करकट, मानव मल, सब्जी बाजार के सड़े-गले फल व सब्जियों का कचरा, बाग-बगीचों का कचरा, उद्योगों, सड़कों, नालियों व गटरों का कचरा, मांस व मछली बाजार का कचरा, मरे हुए जानवर व चर्मशोधन का कचरा, आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन सबसे मृदा-प्रदूषण होता है।
मृदा-प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
(1)व्यर्थ पदार्थों व अवशिष्टों का समुचित निक्षेपण किया जाना चाहिए।
(2)कृषि कार्यों में डी.डी.टी., लिण्डेन, एल्ड्रिन तथा डीलिड्रन आदि के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
(3)नागरीकों को चाहिए कि वे कूड़ा-कचरा सड़क पर न फैंके।
(4)अस्वच्छ शौचालयों के स्थान पर स्वच्छ शौचालयों का निर्माण करना चाहिए।
(5)अवशिष्टों के निक्षेपण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
(6)नागरिकों में सफाई के प्रति चेतना जागृत करनी चाहिए।
(7)मृदा-क्षरण को रोकने के उपाय करने चाहिए।