साम्प्रदायिकता
इसका सामान्य अर्थ उस भावना से लगाया जाता है। जो धर्म, संस्कृति, भाषा, क्षेत्र, प्रजाति आदि की भिन्नता के कारण समाज के एक समूह को दूसरे समूह से अलग रहने तथा एक-दूसरे का विरोध करने की प्रेरणा देती है। भारत में साम्प्रदायिकता पूर्ण रूप से धार्मिक, अंधविश्वास, भक्ति और निष्ठा से संबंधित है।
विस्तृत परिप्रेक्ष्य में साम्प्रदायिकता दो या दो से अधिक धर्म के अनुयायी के मध्य होने वाला संघर्ष है। जिसमें ना केवल सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान होता है बल्कि राष्ट्रीय एकता व सामाजिक सौहार्द्र में भी कमी आती है।- साम्प्रदायिकता भारत में एक ऐतिहासिक सामाजिक समस्या बनीं हुई है।
कारण
- ऐतिहासिक कारण :- इतिहास में मुस्लिम धर्म को बाह्य आक्रमणकारी के रूप में दर्शाया गया है तथा उन्होंने अपनी सत्ता को स्थायी बनाये रखने के लिए धर्मान्तरण का सहारा लिया। जिसका स्थानीय जनता ने विरोध किया। ब्रिटिश शासन में अंग्रेजों ने फूट डालो व राज करो की नीति को अपनाया जिससे हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य संघर्ष हुए।
- धार्मिक कारण :- सभी धर्मों ने धार्मिक प्रचार व प्रसार के लिए संगठनों की स्थापना की। इन संगठनों ने अपने धर्म के प्रचार के साथ-साथ दूसरे धर्म की कमियों को भी उजागर किया। इससे भी धार्मिक संघर्ष में वृद्धि हुई।
- राजनैतिक कारण :- भारत विभाजन साम्प्रदायिकता की राजनीति का परिणाम है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी संकीर्ण राजनैतिक स्वार्थ की प्राप्ति हेतु, धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दिया जाता है।
- मनोवैज्ञानिक कारक :- बहुसंख्यक की तुलना में अल्पसंख्यक मनोवैज्ञानिक दृष्टि से असुरक्षा महसूस करते है तथा संगठित होकर बहुसंख्यक के प्रति घृणा, द्वेष, विरोध आदि भावनाओं को दर्शाते है।
- सांस्कृतिक कारक :- दोनों धर्मों की अलग-अलग संस्कृति को प्रसारित किया गया तथा भाषा, वेश-भूषा, खान-पान, जीवन शैली आदि सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर द्वि-राष्ट्र के सिद्धान्त को आधार प्रदान किया गया।
- अल्पसंख्यक वाद।
निवारण के उपाय
- धार्मिक संगठनों पर रोक लगाना।
- अल्पसंख्यक वाद की समाप्ति।
- राष्ट्रीय भावना का प्रचार व प्रसार।
- तीव्र आर्थिक व सन्तुलित विकास।
- सभी नागरिकों के लिए समान कानून संहिता।
- राष्ट्रीय एकता परिषद् - 1969 में दिल्ली में गठित।
- सभी धर्मों के उत्सव को मनाना प्रारम्भ करें।
- पर्याप्त कानून व उनका क्रियान्वयन।
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भारतीय समाज